भारत देश आज विश्व मे कृषि क्षेत्र मे अपनी अलग ही पहचान बना ली है। एसी कोई फसल या खेती नही है, जो भारत में नही होती है। पूर्व मे भारत को दूसरो देशों से खाद्यान्नो का आयात करना पड़ता था। लेकिन आज भारत देश दूसरों देशों को निर्यात कर रहा है।
देश के ये हालात पूर्व मे ऐसें नहीं थे, जी हा दोस्तों स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद भारत मे खाद्यान्नों व अन्य कृषि उत्पादों की बहुत ज्यादा संख्या मे कमीं थी। वर्ष 1947 में देश को आजादी मिलने से पहले बंगाल मे भीषण अकाल पड़ा , जिसमे लगभग 20 लाख लोगों की मौत हो गई थी। इसका मुख्य कारण पूर्व शासकों द्वारा कृषि क्षेत्र के प्रति कोई योजना नहीं बनाई गई थी।
हरित क्रांति कि शुरूआत भारत देश मेः-
वर्ष 1947 में देश की जनसंख्या लगभग 31 करोड़ थी, उस समय खाधान्न उत्पादन कम होने के कारण लोगों के लिए अनाज की आपूर्ति करना असंभव था।
उस समय रासायनिक उर्वरकों का उपयोग सिमिंत मात्रा मे ही किया जाता था, वो भी रोपण फसलों के लिए। खाद्यान्न फसलों के लिए केवल गोबर से बनी खाद का उपयोग किया जाता था।
आजादी के बाद भारत सरकार ने देश को कृषि क्षेत्र मे सक्षम बनाने के लिए समय समय पर योजनांए तैयार कि गई।
प्रथम दों पंचवर्षिय योजनाओं मे सरकार द्वारा सिंचित क्षेत्र का विस्तार व उवर्रकों का उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया लेकिन देश मे अनाज संकट का कोई स्थाई समाधान नहीं निकल सका।
विश्व मे उस समय कृषि क्षेंत्र मे शोध कार्य प्रगति पर था, अनेक वैज्ञानिकों द्वारा कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे थे।
नार्मन बोरलाग नाम के वैज्ञानिक द्वारा गेहूं की हाइब्रिड प्रजाति का विकास किया गया। इसके चलते इन्हें हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। जबकि भारत मे हरित क्रांति लाने का श्रेय एमएस स्वामीनाथन को जाता है।
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हरित क्रांति : उद्देश्य
हरित क्रांति एक ऐसी कृषि सुधार और उत्पादन वृद्धि की पहल थी जिसने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया। हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में हुई और इसके प्रमुख उद्देश्य थे:
- उच्च उत्पादकता वाली किस्मों का प्रयोग
- उन्नत कृषि तकनीकों का समावेश
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग
- सिंचाई सुविधाओं का विस्तार
हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया और भूखमरी की समस्या काफी हद तक समाप्त हो गई। इसने भारत की अर्थव्यवस्था और कृषि प्रणाली को पूरी तरह बदल कर रख दिया।
हरित क्रांति का प्रभाव
- भारत मे वर्ष 1960 मे अकाल जैसे हालात उत्पन्न होने लग गये। उस समय भारत सरकार द्वारा विदेशों से हाइब्रिड़ बीज आयात किये गये।
- भारत सरकार द्वारा आयात किये गये उन्नत किस्मों के लिए पर्याप्त मात्रा मे सिंचाई कि सुविधा व समय पर उर्वरक उपलब्ध करवाने के लिए भी योजना तैयार कि गई। शुरूआत मे गेहूं , जौ, मक्का, चावल , ज्वार व बाजार कि फसलो पर ध्यान दिया गया।
- इस हरित क्रांति के कारण ही वर्ष 1968 मे गेहूं का उत्पादन 170 लाख टन उत्पादन हो गया, जो अपने आप मे रिर्कोड था, और इस तरह उत्पादन में लगातार वृध्दि होती गई।
- हरित क्रांति कि सफलता के बाद कृषि उपकरणो जैसे टैक्टर, हार्वेस्टर व ट्यूबवैल का उपयोग किया जाने लगा। इस प्रकार तकनीकी के उपयोग से कम श्रम मे अधिक उत्पादन होने लगा।
हरित क्रांति के नकारात्मक एवं सकारात्मक प्रभाव
- कृषि क्षेत्र मे मशीनरी के चलते देश मे इसके उघोग स्थापित होने लगे व साथ ही परिवहन हेतु सड़को का निर्माण कार्य मे भी बढ़ोतरी हुई।
- आज देश में कृषि जीविकोपार्जन का साधन नही रहा, बल्कि यह ग्रामीण समाज में आय का स्त्रोत बन गया है।
- प्रतिव्यक्ति कि आय मे वृध्दि के कारण, सयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवार बनने लगे।
- आय अधिक होने के कारण नशा अपने चरम सीमा पर पहुंच गया है।
- धनी व निर्धन किसानो के बिच असमानता बढ़ी, कुछ स्थानों पर इसके कारण संधर्ष भी होते है।
- इस क्रांति से लधु व सीमांत किसानों से ज्यादा बड़े किसानों के लिए लाभप्रद रही, इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि सीमांत किसानो द्वारा उच्च तकनीकी को बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में राशि का ना होना।
Nice information given