सरसों की फसल में होने वाले रोग, लक्षण और रोकथाम 2025
सरसों की फ़सल एक तिलहनी फ़सल है।जिसका इस्तेमाल खाद्य तेल बनाने में होता है. सरसों के बीजों में करीब 25 से 50प्रतिशत तेल होता है. सरसों के तेल का इस्तेमाल अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है. सरसों का तेल एवम रस कफ़ और वातनाशक, रक्तपित्त और अग्निवर्द्धक, खुजली, कोढ़, पेट के कृमि आदि को नाशक माना जाता है.
सरसों में होने वाले रोगhttps://hindi.krishijagran.com/farm-activities/sowing-and-care-of-musturd-crop/
1.सरसों का सफेद रतुआ या श्वेत किट्ट रोग
यह रोग लगभग सभी जगह पाया जाता हैं इस रोग के कारण पतियों पर सफेद रंग के फफोले बन जाते हैं इस रोग में फूल एवम पत्तियाँ केकड़े के समान हो जाती हैं ।
॰उपचार
इस रोग से ग्रस्त भाग को नष्ट करें । ज़्यादा सिंचाई न करें । मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी या रैडोमिल एम जेड 72 डबल्यू पी का घोल बना कर दस दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव किया जाना चाहिए ।
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2.सरसों का झुलसा या काला धब्बा रोग
शुरुआत में पत्तियों पर बुरे धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में तने पर भी फ़ैल जाते हैं और फ़सल को झुलसा देते हैं। रोगग्रस्त से हर लिया उस सिकुड़ जाती है जिससे दाने ख़राब हो जाते हैं
॰उपचार
मेनकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बना कर दस दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव किया जाना चाहिए
3.सरसों का तना सड़न या पोलियो रोग
यह रोग से फूल आने पर ही पनपता है तने के निचले भाग में भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो सफ़ेद जाल से ढके रहते हैं।तना टूटकर या मुरझाकर नीचे गिर जाता है
॰उपचार
0.1 प्रतिशत् कॉर्बंडाज़िम दवा फूल आने पर दस दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करें ।
सरसों की फसल में कीट प्रकोप
1.सरसों का चितकबरा (पेन्टेड बग) कीट
प्रौढ़ व शिशु दोनों ही पौधों से रस चूसते है जिससे पौधे मर जाते है। यह कीट अक्टूबर माह एवं कटाई के समय मार्च माह में ज्यादा हानि पहुँचाते है।
उपचार
मेलाथियाँन 500 ईसी की 500 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें
2.सरसों का चेंपा लसा या माहू कीट
यह सरसों में पाया जाने वाला एक प्रमुख कीट है यह दिसंबर में आने लगता हैं और जनवरी फ़रवरी में सबसे ज़्यादा होता हैं ।यह फूलों का और पौद्दे का रस चूसते हैं जिससे उत्पादन प्रभावित होता हैं ।
उपचार
अधिक प्रकोप की अवस्था में ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 500 मिली लीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।